Swar kisse kahte hai? Udhaaran Sahit:- हेलो दोस्त इस पोस्ट में आपका स्वागत है। आज हम स्वर किसे कहते हैं इसके कितने प्रकार हैं इसके बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। इस पोस्ट में आप लास्ट तक बने रहे चलिए शुरू करते हैं।

संस्कृत वर्णमाला में एक और स्वर ॠ है। इसे भी सम्मिलित कर लेने पर वर्णों की संख्या 46 हो जाती है।
इसके अलावा हिन्दी में अँ, ड़, ढ़ और अंग्रेजी से आगत ऑ ध्वनियाँ प्रचलित हैं। अँ अं से भिन्न है, ड़ ड से, ढ़ ढ से भिन्न है, इसी प्रकार ऑ आ से भिन्न ध्वनि है। वास्तव में इन ध्वनियों (अँ, ड़, ढ़, ऑ) को भी हिन्दी वर्णमाला में सम्मिलित किया जाना चाहिए। इनको भी सम्मिलित कर लेने पर हिन्दी में वर्णों की संख्या 50 हो जाती है। हिन्दी वर्णमाला दो भागों में विभक्त है स्वर और व्यंजन।
स्वर किसे कहते हैं?
स्वर की परिभाषा :- जिन ध्वनियों के उच्चारण में हवा मुख-विवर से अबाध गति से निकलती है, उन्हें स्वर कहते हैं। स्वर दो प्रकार के होते हैं।
- मूल स्वर, 2. सन्धि स्वर।
मूल स्वर (ह्रस्व स्वर) की परिभाषा : वे स्वर जिनके उच्चारण में कम-से-कम समय लगता है, अर्थात् जिनके उच्चारण में अन्य स्वरों की सहायता नहीं लेनी पड़ती है, मूल स्वर या ह्रस्व स्वर कहलाते हैं
जैसे :- अ, इ, उ, ऋ
सन्धि स्वर की परिभाषा: वे स्वर जिनके उच्चारण में मूल स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है, सन्धि स्वर कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं :-
(क) दीर्घ स्वर
(ख) संयुक्त स्वर
दीर्घ स्वर की परिभाषा:- दीर्घ स्वर वे स्वर जो सजातीय स्वरों के संयोग से निर्मित हुए हैं, दीर्घ स्वर कहलाते हैं।
जैसे:-
अ + अ = आ
इ + इ। = ई
उ + उ। = ऊ
संयुक्त स्वर की परिभाषा :- संयुक्त स्वर वे स्वर जो विजातीय स्वरों के संयोग से निर्मित हुए हैं, संयुक्त स्वर कहलाते हैं।
जैसे:-
अ + इ = ए
अ + ए = ऐ
अ + उ = ओ
अ + ओ = औ
स्वरों का उच्चारण
उच्चारण स्थान की दृष्टि से स्वरों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।
अग्र स्वर की परिभाषा: जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग ऊपर उठता है, अग्र स्वर कहलाते हैं।
जैसे :- इ, ई, ए, ऐ।
मध्य स्वर की परिभाषा: जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा समान अवस्था में रहती है, मध्य स्वर कहलाते हैं।
जैसे:- ‘अ ‘
पश्च स्वर की परिभाषा: जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पश्च भाग ऊपर उठता है, पश्च स्वर कहलाते हैं।
जैसे:- आ, उ, ओ, औ ।
इसके अलावा अँ ( ँ), अं ( ं), और अ: (:) ध्वनियाँ हैं। ये न तो स्वर हैं और न ही व्यंजन। आचार्य किशोरीदास बाजपेयी ने इन्हें ‘अयोगवाह’ कहा है, क्योंकि ये बिना किसी से योग किए ही अर्थ वहन करते हैं। हिन्दी वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों के पहले निर्धारित किया गया है। एक ही स्थान से बाले जाने वाले स्वरों को सजातीय स्वर कहते हैं तथा विभिन्न स्थानों से बोले जाने वाले स्वरों को विजातीय स्वर कहते हैं।
निष्कर्ष
हमें आशा है कि आपको स्वर के बारे में लिखा गया यह महत्वपूर्ण आर्टिकल “स्वर किसे कहते हैं स्वर कितने प्रकार के होते है?” आपके लिए काफी लाभदायक सिद्ध हुआ होगा। कृपया इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि और भी विद्यार्थी को स्वर के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो सके।
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